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सेमीफाइनल में पहुंचे अफगान क्रिकेट की कहानीः सोवियत बम धमाकों से बचे रिफ्यूजी ने टीम बनाई, प्रैक्टिस के लिए भारत ने ग्राउंड दिया

24 दिसंबर, 1979 की आधी रात अफगानिस्तान में सोवियत संघ के 280 मिलिट्री एयरक्राफ्ट काबुल में उतरे और करीब 25 हजार सैनिकों ने काबुल पर कब्जा कर लिया। विमानों ने अफगानिस्तान के नांगरहार इलाके में बम गिराने शुरू किए। वहां रहने वाला एक शख्स अपने चार साल के बेटे और परिवार को लेकर भाग निकला। जान बचाकर ये परिवार सरहद पार करते हुए पाकिस्तान पहुंचा। इसे पेशावर के एक रिफ्यूजी कैंप में जगह मिली।


ये चार साल का बच्चा कैंप में ही बड़ा हो रहा था। उसकी क्रिकेट में दिलचस्पी थी। वो पाकिस्तान टीम को क्रिकेट खेलते हुए देखा करता था। 90 के दशक में क्रिकेट का नशा पाकिस्तान के सिर चढ़कर बोल रहा था। ये नशा और चरम पर पहुंच गया जब पाकिस्तान ने 1992 का क्रिकेट वर्ल्ड कप जीत लिया। तभी इस बच्चे ने रिफ्यूजी कैंप में एक टीम बनाई। ये अफगानिस्तान की पहली क्रिकेट टीम थी। इस बच्चे का नाम ताज मलिक था।


ताज ने कैंप में रहते हुए ही सपना देखा कि अफगानिस्तान की एक क्रिकेट टीम होगी, जो दुनियाभर में खेलेगी। उसने पाकिस्तान की तरफ से घरेलू क्रिकेट खेलने वाले अफगानी क्रिकेटरों से कहा आओ हम अपनी टीम बनाएं। चलो हम काबुल चलकर खेलेंगे, लेकिन कोई उसकी बात सुनने को तैयार नहीं था। उधर सोवियत रूस अफगानिस्तान से जा चुका था। ताज मलिक अफगानिस्तान लौटे और क्रिकेट टीम बनाई। पाकिस्तान की जमीन पर अफगानिस्तान का क्रिकेट जन्मा था, लेकिन इसे पाल पोसकर भारत ने बड़ा किया है।


आतंक और युद्ध के बीच जन्मा अफगान क्रिकेट अफगानिस्तान में क्रिकेट की शुरुआत 19वीं सदी में एंग्लो-अफगान युद्ध के दौरान शुरू हुई थी जब 1830 के दशक में ब्रिटिश सैनिक काबुल में क्रिकेट खेला करते थे। तब भारत की तरह वहां भी ये खेल केवल गोरे लोग ही खेल सकते थे।


90 के दशक की शुरुआत के साथ ही अफगानिस्तान पर सोवियत आक्रमण शुरू हो चुका था। युद्ध के कारण अफगानिस्तान के लोगों ने पाकिस्तान में शरण ली थी।


यहां रहकर ताज मालिक ने अफगानिस्तान क्रिकेट टीम को खड़ा करने के लिए जो मेहनत की, उसके चलते ही उन्हें 'फादर ऑफ अफगान क्रिकेट' का खिताब मिला है।


ताज मलिक ने बाकायदा उन अफगान खिलाड़ियों की भर्ती की जो पाकिस्तान की ओर से घरेलू क्रिकेट खेलते थे। ताज हर खिलाड़ी के पास जाते और उनसे काबुल में क्रिकेट खेलने की बात कहते।


इस दौरान ताज मलिक को अल्लाह दाद नूरी का साथ मिला। ताज की ही तरह नूरी भी चाहते थे कि अफगानिस्तान की खुद की क्रिकेट टीम हो। ताज मलिक ने अफगानिस्तान क्रिकेट क्लब बनाया था, जिसकी टीम पाकिस्तान के पेशावर में दूसरे पाकिस्तानी क्रिकेट क्लबों के साथ खेला करती थी। धीरे-धीरे इस टीम का खेल बेहतर होता गया। 1995 में अफगान ओलंपिक कमेटी की मदद से अफगान क्रिकेट फेडरेशन बनाया गया। नूरी को अफगानिस्तान क्रिकेट फेडरेशन का प्रेसिडेंट और मलिक को जनरल सेक्रेटरी बनाया गया। मलिक अफगानिस्तान के पहले हेड कोच भी बने।


वो खेल जिसे तालिबान ने पहली बार मान्यता दी सख्त तालिबानी सरकार की मौजूदगी में क्रिकेट ने अफगानिस्तान में कदम रखा। शरिया कानून पर चलने वाली तालिबान सरकार ने शुरुआत में क्रिकेट सहित सभी खेलों पर बैन लगाकर रखा था। क्रिकेट को तालिबान ने इसलिए एक्सेप्ट किया, क्योंकि इसमें पूरा शरीर ढंका होता है। खिलाड़ी एक-दूसरे से बेहद कम संपर्क में रहते हैं, यानी एक-दूसरे को बहुत कम छूते हैं। साल 2000 में क्रिकेट, तालिबान से मान्यता प्राप्त करने वाला पहला खेल बना।


ईएसपीएन के मुताबिक तालिबान से मंजूरी मिलने की एक बड़ी वजह ये भी थी कि तालिबानी के लोग भी रिफ्यूजी कैंप में क्रिकेट खेला करते थे। साल 2001 में अफगानिस्तान को ICC से एफिलिएट मेंबर की मान्यता मिली।


तालिबान के आने के बाद राशिद-नबी ने देश छोड़ा 15 अगस्त 2021 को तालिबान ने अफगानिस्तान पर फिर से कब्जा कर लिया था। इस दौरान अफगानिस्तान क्रिकेट टीम के तीन स्टार प्लेयर राशिद खान, मोहम्मद नबी और मुजीब उर रहमान 'द हंड्रेड टूर्नामेंट' में खेलने के लिए इंग्लैंड गए थे। बाकी बचे कई खिलाड़ी वॉर जोन में फंसे थे। राशिद और नबी ने सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दुनियाभर के शीर्ष नेताओं से अपील की कि इस अफरा-तफरी के माहौल में अफगानिस्तान और वहां के क्रिकेट को बचाएं।


तालिबान ने महिलाओं के क्रिकेट पर बैन लगा दिया, लेकिन पुरुष खिलाड़ियों को सपोर्ट करने की बात कही। तालिबान ने कहा कि 'अफगानों ने तब क्रिकेट खेलना शुरू किया था, जब तालिबान ने पहले शासन किया था, हम आगे भी इस खेल का समर्थन करेंगे।'


9 सितंबर 2021 को अफगानिस्तान क्रिकेट बोर्ड (एसीबी) ने आईसीसी टी-20 वर्ल्ड कप के लिए टीम का ऐलान किया। राशिद खान को टीम का कप्तान बनाया गया, लेकिन राशिद ने कप्तानी से इस्तीफा दे दिया। राशिद ने सोशल मीडिया पर लिखा कि सिलेक्टर्स और एसीबी ने टीम चुनने के लिए मेरी राय नहीं पूछी।


सुरक्षा कारणों के चलते बॉलर राशिद खान और ऑलराउंडर मोहम्मद नबी काबुल छोड़कर अपने परिवार के साथ दुबई में रहने लगे। इसके बाद भी बाकी बचे प्लेयर अफगानिस्तान में रह कर प्रैक्टिस करते रहे हैं।


अफगानिस्तान क्रिकेट के लिए भारत 'दूसरा घर' अफगान क्रिकेट को बढ़ाने के लिए भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) ने खूब सपोर्ट किया। उसी की मदद से 2013 में अफगानिस्तान आईसीसी का एसोसिएट सदस्य बना। इसके बाद अफगानिस्तान टीम को आईसीसी की तरफ से फंड मिलने लगा। फाइनेंशियल सपोर्ट से अफगान क्रिकेट टीम का मनोबल बढ़ा और 2015 के वर्ल्ड कप में टीम ने शानदार प्रदर्शन किया।


ये वो दौर था जब अफगान क्रिकेट और तालिबान में तनाव बढ़ता जा रहा था। भले ही तालिबान ने पुरुषों के क्रिकेट खेलने पर पांबदी न लगाई, लेकिन टीम को कोई फंड नहीं दिया जा रहा था। खिलाड़ियों को ट्रेनिंग फैसिलिटी मिलनी बंद हो गई थी।


अफगानिस्तान क्रिकेट पर खतरा मंडरा रहा था, लेकिन मुश्किल के इस समय में बीसीसीआई ने अफगान क्रिकेट की ओर मदद के लिए हाथ बढ़ाए। बीसीसीआई ने अफगानिस्तान टीम को भारत में प्रैक्टिस करने के लिए ग्राउंड दिए। अफगान क्रिकेट टीम भारत में खेलने लगी।


2016 में नोएडा का इंटरनेशल क्रिकेट स्टेडियम अफगानिस्तान का होम ग्राउंड बना। यहां अफगान खिलाड़ियों को भारत की वर्ल्ड क्लास कोचिंग फैसिलिटी मिली। भारतीय टीम के लिए खेले अनुभवी खिलाड़ियों से सीखने को भी मिला। इससे अफगान क्रिकेट में काफी सुधार आया।


2017 में ग्रेटर नोएडा में आयरलैंड के खिलाफ घरेलू अंतरराष्ट्रीय मैच भी खेले। इसका नतीजा यह रहा कि 2017 में अफगानिस्तान को टेस्ट टीम का दर्जा मिला। बीसीसीआई ने अफगानिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अशरफ गनी को बेंगलुरु में टीम का पहला टेस्ट मैच देखने के लिए इनवाइट किया।


टेस्ट क्रिकेट लीग का हिस्सा बनने के बाद देहरादून का राजीव गांधी इंटरनेशनल क्रिकेट स्टेडियम अफगानिस्तान का घरेलू मैदान बन गया। अफगानिस्तान ने देहरादून में बांग्लादेश के खिलाफ टी20 सीरीज की मेजबानी भी की।


2019 में अफगानिस्तान क्रिकेट बोर्ड के अनुरोध के बाद बीसीसीआई ने लखनऊ के इकाना स्टेडियम को अफगान क्रिकेट टीम का होम स्टेडियम बनाया। 2017 में भारत ने अफगानिस्तान के कंधार में एक क्रिकेट स्टेडियम बनाया है। टी20 वर्ल्ड कप 2024 खत्म होने के बाद अफगानिस्तान और बांग्लादेश के बीच वनडे और टी20 सीरीज खेली जानी है। इसके लिए भारत एक बार फिर अफगानिस्तान का घरेलू मैदान बनेगा।


आईपीएल ने अफगान खिलाड़ियों को दिया बड़ा मंच दुनिया की सबसे बड़ी टी20 लीग आईपीएल ने अफगान खिलाड़ियों को बड़ा मंच और मौका दिया। 2017 में स्पिन बॉलर राशिद खान आईपीएल में खेलने वाले पहले अफगान खिलाड़ी बने। इसके बाद मोहम्मद नबी, रहमनुल्लाह गुरबाज, नवीन उल हक जैसे प्लेयर्स ने आईपीएल के अनुभव से वर्ल्ड क्रिकेट में शानदार प्रदर्शन किया। इसके अलावा लालचंद राजपूत और मनोज प्रभाकर जैसे पूर्व भारतीय क्रिकेटर अफगानिस्तान के कोच भी रहे हैं। उनके मौजूदा मेंटर पूर्व भारतीय खिलाड़ी अजय जडेजा हैं।


ऑस्ट्रेलिया ने 3 बार अफगान के साथ खेलने से मना किया


टी20 वर्ल्ड कप में अफगानिस्तान ने ऑस्ट्रेलिया को हराकर बड़ा उलटफेर किया। ये वही ऑस्ट्रेलिया टीम है जिसने 2021 के बाद से 3 बार अफगानिस्तान के खिलाफ सीरीज खेलने से मना कर दिया था। पहली बार साल 2021 में ऑस्ट्रेलिया ने होबार्ट में अफगानिस्तान के साथ होने वाले एकमात्र टेस्ट मैच को रद्द कर दिया। मार्च 2023 में ऑस्ट्रेलिया से 3 वनडे मैचों की सीरीज खेलने से इनकार किया। इसको लेकर ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट बोर्ड का कहना था कि तालिबान के कब्जे वाले अफगानिस्तान में महिलाओं की स्थिति अच्छी नहीं है। उन्हें सही ढंग से नहीं रखा जाता है। उनके साथ गलत व्यवहार किया जाता है। इसके बाद अफगानिस्तान बोर्ड ने टीम को यूएई में सीरीज करवाने के लिए कहा था, लेकिन ऑस्ट्रेलिया ने ये बात भी नहीं मानी।


क्रिकेट अफगान के लोगों की खुशी का एकमात्र जरियाः राशिद खान


इस मामले में अफगान कप्तान राशिद खान ने कहा था, 'हम इसलिए क्रिकेट खेलना चाहते हैं, क्योंकि अफगानिस्तान में लोगों की खुशी का यही एक जरिया है। अगर आप यही हमसे छीन लेंगे तो हम जश्न कैसे मनाएंगे। 2023 में राशिद ने ऑस्ट्रेलिया को चेतावनी देते हुए कहा था कि अगर ऑस्ट्रेलिया अफगानिस्तान नहीं आ सकता तो मैं भी बिग बैश के लिए नहीं जा सकता। 2024 के शुरुआत में होने वाले T20 सीरीज भी ऑस्ट्रेलिया ने टाल दी थी।


अजय जडेजा ने हिम्मत से लड़ना सिखाया


अफगानिस्तान टीम के हरफनमौला प्रदर्शन का श्रेय टीम के मेंटर अजय जडेजा को जाता है। अफगानिस्तान क्रिकेट बोर्ड ने जडेजा को सितंबर 2023 में अपना मेंटर अपॉइंट किया था। ये वो समय था जब तैयारी के लिए टीम अफगानिस्तान भारत आई थी। अजय के ज्वाइन करने के बाद अफगान टीम के मनोबल में जबरदस्त बदलाव आया है। खिलाड़ी मानसिक रूप से इतने मजबूत हो चुके हैं कि उन्हें कोई फर्क नहीं सामने कौन सी टीम है। वे बस अपना 100% देने मैदान में उतरते हैं।


अजय और अफगान टीम के बीच भाषा भी आड़े आई थी, लेकिन जीत की भूख ने ये दिक्कत भी दूर कर दी। अफगान टीम के ज्यादातर खिलाड़ी पश्तो बोलते हैं। ऐसे में कई बार जब अजय टीम के मनोबल बढ़ाने वाली बातें कहते तो उनके समझ नहीं आती थीं। ऐसे में अजय ने ट्रांसलेटर की मदद ली। टीम के दूसरे खिलाड़ी भी ट्रांसलेट करने लगे। आखिरकार पंद्रह दिन में ही टीम की जडेजा के साथ ट्यूनिंग जम गई।


अफगानिस्तान के कप्तान हशमतुल्लाह शाहिदी कहते हैं कि जडेजा हमें ये नहीं बताते थे कि कैसे खेलना है। वो हमें ये सिखाते थे कि जब क्रिटिकल कंडीशन हो तो कैसे अपने माइंड को कूल रखना है। उन्होंने हमेशा हमें दबाव में संभलकर खेलने की ट्रेनिंग दी। जडेजा ने हमें दबाव में खेलने के तरीके बताए। उन्होंने कभी हमारे ये नहीं कहा कि ऐसे गेंद फेंको ये करो वो करो। वो बस हमें मेंटली स्ट्रांग बनाने पर फोकस करते थे। उन्हीं के कारण हम कई बड़ी टीमों के सामने डट के लड़े हैं और जीते हैं।


ऑस्ट्रेलिया को हराने के बाद अजय जडेजा ने सोशल मीडिया पर लिखा कि मैं पहले ही कह चुका हूं जिस दिन गिरा देंगे अफगानिस्तान की टीम बड़ी हो जाएगी। लो फिर हमने ऑस्ट्रेलिया को भी गिरा दिया। बधाई...।


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