ndia या भारत. 5 सितंबर के दिन देश में दोनों नामों पर सियासी बवाल मचा रहा. कहा जा रहा है कि मोदी सरकार देश का नाम ‘इंडिया’ से बदलकर ‘भारत’ कर देगी. हालांकि, शाम ढलते-ढलते केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर की तरफ से कहा गया कि सरकार संसद का विशेष सत्र नाम बदलने के लिए नहीं बुला रही है. ठाकुर ने इस बात को ‘अफवाह’ कहकर खारिज कर दिया. लेकिन एक सवाल है जिसे खारिज नहीं किया जा सकता है. सवाल ये कि अगर देश का नाम बदला गया तो इसमें खर्च कितना आएगा.
डैरेन ओलिवियर के इसी मॉडल की मदद से भारत के लिए होने वाले खर्च का पता लगाया जा सकता है. भारत का नाम बदलने की प्रक्रिया में होने वाला खर्च कितना बड़ा है, ये एक उदाहरण से समझ सकते हैं. केंद्र सरकार 80 करोड़ भारतीय नागरिकों के लिए खाद्य सुरक्षा में जितना खर्च करती है, नाम बदलने में उतना खर्च होने का अनुमान है.
अब सवाल ये है कि ये आंकड़ा निकला कैसे?
आउटलुक की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2023 में खत्म हुए वित्तीय वर्ष के लिए भारत की राजस्व प्राप्ति 23 लाख 84 हजार करोड़ रुपये थी. माने सरकार ने जो टैक्स और गैर-टैक्स वाला राजस्व यानी रेवेन्यू हासिल किया वो. राजस्व के इस आंकड़े के आधार पर ‘ओलिवियर मॉडल’ के मुताबिक भारत का नाम बदलने की प्रक्रिया में लगभग 14 हजार 304 करोड़ रुपये का खर्च आएगा.
बता दें कि ओलिवियर ने साल 2018 में साउथ अफ्रीकी देश स्वाज़ीलैंड का नाम बदले जाने पर ही ये मॉडल विकसित किया था. स्वाज़ीलैंड का नाम बदलकर इस्वातिनी रखा गया था. ओलिवियर के मॉडल के मुताबिक स्वाज़ीलैंड का नाम बदले जाने का खर्च लगभग 500 करोड़ रुपये आया था. इस आंकड़े को निकालने में भी ओलिवियर ने देश की राजस्व कमाई वाला फॉर्मूला लगाया था.
इलाहाबाद का नाम बदलने पर 300 करोड़ का खर्च
इस साल की शुरुआत में महाराष्ट्र के शहर औरंगाबाद का नाम बदलकर छत्रपति संभाजी नगर रखा गया था. उसी वक्त उस्मानाबाद का नाम बदलकर धाराशिव कर दिया गया था. साल 2016 में हरियाणा सरकार ने गुड़गांव का नाम बदलकर गुरुग्राम कर दिया था. वहीं साल 2018 में यूपी सरकार ने इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज कर दिया था. इंडिया टुडे की रिपोर्ट के हवाले से बताया गया कि सरकारी आंकड़ों के अनुसार इलाहाबाद का नाम बदलने पर राज्य सरकार को 300 करोड़ रुपये से अधिक का खर्च आया था.
बहरहाल, भारत का नाम बदला जाएगा या नहीं. इस पर सरकार की तरफ से अभी कोई भी आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है. संसद का विशेष सत्र किस वजह से बुलाया गया है, इसके लिए सत्र शुरू होने का इंतजार करना होगा. तभी पिक्चर साफ होगी.
वैसे भारत पहला देश नहीं जहां नाम बदले जाने या बदल देने की बात हो रही है. ऐसे बदलाव समय-समय पर कई देशों में पहले भी हुए हैं. कभी कोलोनियल लेगेसी मिटाने के वास्ते. तो कभी एडमिनिस्ट्रेशन को स्ट्रीमलाइन करने के लिए.
हर बदलाव अपने साथ कुछ न कुछ खर्च लेकर चलता है. जैसे घर में पुताई कराना. उसके अपने खर्च होते हैं. स्कूल में नाम बदलवाना या किसी डॉक्यूमेंट में अपना पता या नाम चेंज कराना. सभी बदलाव बिना किसी खर्च के नहीं होते. ऐसा ही देश के लेवल पर होता है. नाम बदला जाएगा तो सभी डॉक्यूमेंट्स, आधिकारिक वेबसाइट, देश की विभिन्न संस्थान और कई अन्य बड़े-बडे़ बदलाव भी करने होंगे. इन सबका अपना अलग-अलग खर्चा होगा.
लेकिन इस खर्चे को मापा कैसे जाएगा?
इसके भी कुछ तरीके होते हैं. ऐसा ही एक तरीका साउथ अफ्रीका के एक वकील ने निकाला था. नाम डैरेन ओलिवियर. आउटलुक में छपी खबर के मुताबिक ओलिवियर ने अफ्रीकी देशों में नाम बदलने की प्रक्रिया की तुलना किसी बड़े कॉरपोरेट की रीब्रांडिंग एक्सरसाइज़ से की. उनके मुताबिक एक बड़े कॉरपोरेट हाउस की औसत मार्केटिंग कॉस्ट उसके रेवेन्यू का 6 फीसदी होती है. वहीं रीब्रांडिंग एक्सरसाइज़ का खर्च कंपनी के मार्केटिंग बजट का 10 फीसदी तक हो सकता है.
**भारत या इंडिया: एक देश के नाम के पीछे छिपे वित्तीय और प्रशासनिक पहलू**
आज, 5 सितंबर के दिन, भारत में देश के नाम को लेकर एक सीधी सियासी बवाल चल रहा है। अफवाहों के बीच मोदी सरकार की संविधानिक प्रक्रिया के तहत देश का नाम 'इंडिया' से बदलकर 'भारत' करने की चर्चाएं चल रही हैं, लेकिन यह बदलाव अब तक आधिकारिक तौर पर पारित नहीं हुआ है।
इस परिस्थिति में, वह एक अत्यंत महत्वपूर्ण सवाल उठता है - यदि देश का नाम बदल दिया जाता है, तो इसमें कितना वित्तीय और प्रशासनिक खर्च आ सकता है? इस बारे में हम गहराई से सोचते हैं।
**बदलाव के साथ आते हैं खर्चे:**
इस बदलाव का प्रारंभिक खर्चा, सभी अधिकारिक दस्तावेज, सरकारी वेबसाइटों, और संगठनों के नाम के परिवर्तन के साथ आता है। इसके अलावा, नए नाम को प्रमोट करने और उसे लोगों के बीच प्रसारित करने के लिए भी अलग-अलग अधिवासनिक खर्च होते हैं।
**खर्च की गणना कैसे की जा सकती है?**
एक तरीका हो सकता है कि हम दूसरे देशों के नाम परिवर्तन की प्रक्रिया से सीखें, जैसे दक्षिण अफ्रीका में हुआ था। एक वकील ने वहां के बदलाव को किसी कॉर्पोरेट की ब्रांडिंग की तरह देखा और उसके खर्च को उसके रेवेन्यू के एक निश्चित प्रतिशत के हिसाब से गणना किया।
**भारत के लिए अनुमानित खर्च:**
भारत के लिए इस तरीके के
अनुसार, खर्च का आकलन करने के लिए हमें उस नाम के परिवर्तन की प्रक्रिया के अनुसार अपेक्षित खर्च की गणना करने की कोशिश कर सकते हैं। जैसे कि भारत का नाम बदलने में लगभग 14,304 करोड़ रुपये का खर्च आ सकता है, जो एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया हो सकती है।
**संक्षिप्त में:**
नाम का बदलाव एक बड़ा और महत्वपूर्ण प्रक्रिया होती है, और इसके साथ आते हैं वित्तीय और प्रशासनिक खर्चे। हमें यह खर्च गणना करके यह समझने की जरूरत होती है कि इस प्रक्रिया का क्या मामूला और असामान्य फायदा है।
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